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सोशल मीडिया नें बदला हमारे समाज का चेहरा। -2

सोशल मीडिया के मायने।


सोशल मीडिया, किसी के लिये रिश्ते को बनाए रखने का माध्यम है तो किसी के लिये यह व्यवसाय का साधन और किसी के लिये महज समय बिताने का ज़रिया। इसका आकार बिल्कुल हमारे कल्पना की तरह हो चला है जिसकी कोई सीमा नहीं है। इसकी शुरुआत के बाद से ये तो हम पर हावी होता चला गया है। आज इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के कई देशों के राजनेता अपनी बात कहने के लिये सोशल मीडिया का सहारा लेते है।  खैर, इस प्रकार के उदाहरण भरे पड़े है। कुछ लोग तो अपने मौजूदगी का एहसास कराने के लिये भी इसका इस्तेमाल करते है और हमारा बॉलीवुड इसका एक बढ़िया उदाहरण है। 

सोशल मीडिया और हम

सोशल मीडिया के अनगिनत फायदे है, यह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का बहुत ही बढ़िया विकल्प है। पर जहाँ इसके कई फायदे है तो कई नुकसान भी हैं। सोशल मीडिया का प्रभाव हम पर व्यापक रुप से पड़ा है| दुनिया के अधिकांश देशों में सोशल मीडिया से संबंधित कानून बनाए जाने लगे हैं इसका प्रभाव का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है। पर सवाल यह है कि इसे कानून के दायरे में रखा जाना क्यों ज़रुरी है? इसकी वज़ह भी हम हीं हैं। 

सोशल मीडिया और हम।


हम मानवों में अपनी कार्य कौशल की सहायता से लाभप्रद चीज़ों को रचने की बड़ी अनोखी कला है पर उससे अधिक हम अपने आप को कहीं कमज़ोर भी समझने लगते है जब हमारी अपनी रचना पर हमारा स्वंय का नियंत्रण नहीं हो पाता है। सोशल मीडिया भी इसी नियंत्रण के बाहर हो जाता है जब इस पर परोसी गयी अभद्र, आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री समाज में एक खतरनाक वायरस की तरह फैलती है और इससे हम प्रभावित होने लगते है तब इसे कानून के दायरे में रखा जाना ज़रुरी हो जाता है। 



खैर, हम कितने भी लगाम लगा लें, कितने भी कानून बना लें, न तो हम इसे रोक सकते है और न ही इसके प्रभाव से बच सकते है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे  समाज के वैसे लोगों जो इस अभद्रता से रुबरु नहीं होते वो भी इसके प्रभाव से बच नहीं पाते हैं। ज़रा सोचिए आज हम अपने बच्चों को इंटरनेट की सुविधा के साथ स्मार्ट फोन देने में घबराते हैं। वजह साफ है, हम इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में सोचते और डरते है। हम ये नहीं सोचते कि स्मार्ट फोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के सम्पर्क में आने के बाद बच्चों की कल्पना शक्ति में भी इज़ाफा होगा और शायद वह इसी क्षेत्र में कुछ नया कर दिखाएगा, बस डरते है।

आज भारत को डिजिटल इंडिया बनाने की मुहिम चलाई जा रही है पर क्या सिर्फ कैश-लेस लेन-देन करके और सोशल मीडिया पर अपनी आबादी बढ़ा कर हमारा देश डिजिटल इंडिया बन सकता है? नहीं ! हम कम्प्यूटर और सॉफ्टवेयर जगत में अपना स्थान बना चुके पर अभी भी हम बहुत ही पिछड़े हैं। हमें इस क्षेत्र में और आगे बढ़ने के लिए अपनी आने वाली पीढ़ी के और करीब पहुँच कर उनका मार्ग दर्शन करना होगा और खुद को यह विश्वास दिलाना होगा कि सोशल मीडिया एक सुरक्षित रास्ता है, एक शापित वरदान नहीं है।






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