// // Leave a Comment

विश्व के प्राचीन विरासत में शुमार हैं गुमला स्थित डोईसागढ़, पर विकास से अछुता ।

शब्द साधन - गुमला


ऐसा माना जाता है कि सदियों पहले ग़ुमला में एक विशाल मेले का आयोजन होता था जिसे गौ-मेला के नाम से जाना जाता था। इस मेले के नाम पर ही इस स्थान का नाम 'गौमेला' रख दिया गया और आगे यह नाम परिवर्तित होकर 'गुमला' बन गया। इस मेले में किसान और अन्य लोग गाय और अन्य मवेशियों की खरिद-बिक्री के लिए आते थे। आज भी गुमला के भेरनो प्रखंड (ब्लॉक) में बाजार टांड नामक स्थान पर गौमेला लगता है जहां लोग अपने गाय और मवेशियों को लाते है। 'गौमेला' का शाब्दिक अर्थ है 'गाय का मेला'।

गुमला स्थित डोईसागढ़ के खंडर
गुमला स्थित डोईसागढ़ के खंडर


कई वर्षों तक यह मेला वस्तुओं की अदला-बदली का केन्द्र रहा, यहां लोग आते और अपने बनाई हुई वस्तु या फिर अपने उगाए हुए अनाज अथवा खाद्य सामग्री के बदले दुसरी जरुरत के सामान को ले जाते। एक वस्तु के बदले दुसरे वस्तु को खरीदने की प्रणाली को आज हम वस्तु विनिमय प्रणाली के नाम से जानते है।

अस्तित्व एवं निर्माण


18 मई 1983 को गुमला एक ज़िले के तौर पर  अस्तित्व में आया। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्रा ने इसका उद्घाटन किया था और श्री द्वारिका नाथ सिन्हा ने जिले के पहले उपायुक्त के तौर पर पदग्रहण किया था। इससे पहले ब्रिटिश साम्रज्य के समय गुमला लोहारदगा ज़िले के अंतर्गत था।  सन् 1843 ई0 में गुमला को बिशुनपुर प्रांत में सम्मिलित कर लिया गया। सन् 1899 ई0 में बिशुनपुर प्रांत को पृथक करके राँची ज़िला बनाया गया। सन् 1902 में राँची जिला के अंतर्गत गुमला को उपखण्ड बनाया गया और आज बिशुनपुर गुमला ज़िले के अंतर्गत एक विधान सभा क्षेत्र है।

जरुर पढ़ें - पलामु किला : झारखण्ड का ऐतिहासिक गौरव |


पौराणिक दृष्टिकोण


पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से गुमला के विशेष महत्व है। गुमला में 'रिस्यमुक' नामक एक पर्वत है जिसका उल्लेख रामायण में भी है और यह पवन पुत्र हनुमान का जन्मस्थल भी माना जाता है। मुख्य शहर से कुछ कि0मी0 की दुरी पर, घाघरा ब्लॉक को जाने वाली सड़क से थोड़ी दुरी पर एक मंदिर है जो पुर्णरुप से हिंदु देवता हनुमान को समर्पित है।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण


गुमला ऐतिहासिक स्मारकों का गढ़ भी है। गुमला के 12 प्रखंडों (ब्लॉक्स) में एक सिसई प्रखंड के डोईसागढ़ में नवरतनगढ़ के कई प्राचीन स्मारक मिलते है जिसने अब खण्डर का रूप ले लिया है। नागवंशी शासनकाल के दौरान नवरतनगढ़ राजधानी हुआ करता था। नागवंशी शासकों द्वारा ही इस प्रांत का नाम छोटानागपुर रखा गया। नागवंशी शासकों ने यहां कई भव्य और विशाल भवन बनवाये, जिसकी शिल्पकारिता मुगलों से प्रेरित थी।
नागवंशी राजा दुर्जय साल ने मुगलों से आज़ाद होकर इस स्थान को बहुत ही खुबसुरती से विकसित किया। उन्होंने कई इमारत भी बनवाये जिनमें एक विशाल नौ-मंजिला इमारत था जिसके बाद इस स्थान का नाम नवरतनगढ़ रखा गया। ये विशाल भवन अब खण्डर में बदल चुके है। यहां पर एक जलाशय भी मौजुद है जो इसी नागवंशी शासन काल में बनवाया गया है।

अंतत:


ये खंडर भले ही आज विश्व के प्राचीन विरासत में शुमार हैं पर आज इनकी देख रेख बिल्कुल न के बराबर है, झारखण्ड राज्य की राजनीतिक उथल पुथल में यह भव्य विरासत विकासक्रम से अछुता रह गया। यह विडम्बना ही तो है कि जहां सैलानियों की भीड़ और तारिफें होनी चाहिए थी वहां खामोशी और सन्नाटे इन इमारतों के हौसले का मज़ाक उड़ा रही है और उन जर्जर दिवारों को देख कर वक्त भी शर्मिंदा है कि वह रुक भी तो नहीं सकता।

Read this post in english
Ruins of Doisagarh enumerated in World Heritage but remained untouched and alone.

0 Comments:

Post a Comment